Monday, April 4, 2016

इश्क़ मुझ को दगा देता रहा

इश्क़ मुझ को दगा देता रहा
खुद को में होसला देता रहा

दर्द मुझ को मिले जो गैरो  से
फिर भी सब को दुआ देता रहा

थी महोब्बत मुझे  बेइंतिहा
बेवफा को वफ़ा देता रहा

ज़ख्म सब फूल बन गये, तेरी
खुशबू की  हवा देता रहा

दर्द हद से बढ़ा मेरा कभी
हंसी की मैं दवा देता रहा

उम्रभर इन्तजार था तेरा
 कब्र से मैं सदा देता रहा

तू न आई नसीब था मेरा
रूह को यह वजा  देता रहा

ग़म तुझे कोई भी न छू शके
उन को अपना पता देता रहा


अश्क बहते रहे निगाहो से
 इश्क़ का फलसफा देता रहा

मनिष आचार्य - मनु -04 -04 -2016

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