एक मतला पेश करता हूँ मुलायजा फरमाइएगा ,
बहर-ए -रमल मुसदस सालिम २१२२/११२२/११२
दिल मेरा अश्क़ का दरिया हो गया
कोई भीतर मेरे इतना रो गया
दिल की बंजर ज़मीं पर दोस्त मेरा
प्यार के कितने पोधे तू बो गया
रूह को चैन मेरी मिल ही गया
कब्र मे साथ मेरे वो सो गया
रूह को सुकूं हुआ तब मेरी, जब
प्यार जाने कहा मेरा खो गया
बहर-ए -रमल मुसदस सालिम २१२२/११२२/११२
दिल मेरा अश्क़ का दरिया हो गया
कोई भीतर मेरे इतना रो गया
दिल की बंजर ज़मीं पर दोस्त मेरा
प्यार के कितने पोधे तू बो गया
रूह को चैन मेरी मिल ही गया
कब्र मे साथ मेरे वो सो गया
रूह को सुकूं हुआ तब मेरी, जब
प्यार जाने कहा मेरा खो गया
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