Monday, April 4, 2016

तेरे चहेरे को जो गुलाब लिखता हूँ

तेरे चहेरे को जो गुलाब लिखता हूँ
मैं  एक हसीं सा ख्वाब लिखता हूँ

चाँद -तारे सभी  देख  इतराने लगे
मैं झमीं का तुझे महताब लिखता हूँ 

जो लिखे थे खत तूने बरसो पेहले 
उन का ग़ज़लों में जवाब लिखता हूँ 

इश्क़ मुझ को दगा देता रहा

इश्क़ मुझ को दगा देता रहा
खुद को में होसला देता रहा

दर्द मुझ को मिले जो गैरो  से
फिर भी सब को दुआ देता रहा

थी महोब्बत मुझे  बेइंतिहा
बेवफा को वफ़ा देता रहा

ज़ख्म सब फूल बन गये, तेरी
खुशबू की  हवा देता रहा

दर्द हद से बढ़ा मेरा कभी
हंसी की मैं दवा देता रहा

उम्रभर इन्तजार था तेरा
 कब्र से मैं सदा देता रहा

तू न आई नसीब था मेरा
रूह को यह वजा  देता रहा

ग़म तुझे कोई भी न छू शके
उन को अपना पता देता रहा


अश्क बहते रहे निगाहो से
 इश्क़ का फलसफा देता रहा

मनिष आचार्य - मनु -04 -04 -2016

Sunday, April 3, 2016

दिल मेरा अश्क़ का दरिया हो गया

एक मतला पेश करता हूँ मुलायजा फरमाइएगा ,
बहर-ए -रमल मुसदस सालिम  २१२२/११२२/११२

दिल मेरा अश्क़ का दरिया हो गया
कोई भीतर मेरे इतना रो गया

दिल की बंजर ज़मीं पर दोस्त मेरा
प्यार के कितने पोधे तू  बो गया

रूह को चैन मेरी मिल ही गया
कब्र मे साथ मेरे वो सो गया

रूह को सुकूं हुआ तब मेरी, जब
प्यार जाने कहा मेरा खो गया